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कविता

बुलबुला

संजय चतुर्वेदी


बुलबुले में रहने के लिए
कुछ किराया नहीं लगता
आदमी खुद अपने बुलबुले का मालिक होता है

शुरू में होता है छुई-मुई
बाद में फोड़े नहीं फूटता

बुलबुले से आते हैं संदेश
बच्चों के लिए
लोगों के लिए
ब्रह्मांड के लिए

बुलबुले के अंदर दुनिया का शोर नहीं पहुँचता
बुलबुले के अंदर होता है मोक्ष

एक दिन उठ जाता है बुलबुला
सूखी रह जाती है धरती
जिस पर टिका था बुलबुला।

 


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